श्री सत्येन्द्रनाथ बोस का जन्म १ जनवरी १८९४ को कोलकाता में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा उनके घर के पास ही स्थित साधारण स्कूल में हुई थी। इसके बाद उन्हें न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल में भरती कराया गया। स्कूली शिक्षा पूरी करके सत्येन्द्रनाथ बोस ने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। वह अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाते रहे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता रहा। उनकी प्रतिभा देखकर कहा जाता था कि वह एक दिन पियरे साइमन लेप्लास और आगस्टीन लुई काउथी जैसे गणितज्ञ बनेंगे।
सत्येन्द्रनाथ बोस जब एम.एस.सी. में पढ़ रहे थे उन दिनों की घटना है। गणित के प्रश्न में सर आशुतोष मुखर्जी ने एक कठिन सवाल रख दिया। इस सवाल को किसी विद्यार्थी ने हल नहीं किया। यह देखकर सर आशुतोष बहुत नाराज हुए। उन्होंने एक दिन छात्रों और अध्यापकों के सामने अपने मन की नाराजगी प्रकट कर दी। "आप लोग क्या पढ़ाते हैं और ये छात्र क्या पढ़ते हैं, मेरी तो समझ में नहीं आता। इस बार गणित के पेपर में मैंने एक सवाल दिया जिसे कोई हल नहीं कर पाया। बड़ी शर्म की बात है।"
प्रो. आशुतोष मुखर्जी कुलपति और गणित के महान विद्वान थे। उनकी बात काटने का साहस किसी को न था। सिर झुकाए सबने उनकी बात सुन ली। लेकिन एक युवक ने कहा- "सर ! जब प्रश्न ही गलत हो तो उसे हल कैसे किया जाए।" उसके यह कहते ही चारों ओर सन्नाटा छा गया। सर आशुतोष को चुनौती देना मामूली बात न थी। प्रो. आशुतोष ने पूछा- "तुम कैसे कहते हो कि वह प्रश्न गलत था ?" उस युवक का नाम सत्येन्द्रनाथ बोस था। उसने कहा- "वह प्रश्न मुझे याद है। कहें तो इसी समय आपके सामने उसकी गलती बता सकता हूँ ।" और उसने प्रश्न को गलत सिद्ध कर दिया। सर आशुतोष ने युवक सत्येन्द्र की पीठ ठोकी और उसकी प्रतिभा की प्रशंसा की।
सत्येन्द्रनाथ बोस ने सन् १९१५ में गणित में एम. ए स.सी. परीक्षा प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम आकर उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें प्राध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया। उन दिनों भौतिक विज्ञान में नई-नई खोजें हो रही थीं। जर्मन भौतिकशास्त्री मैक्सलांक ने "क्वांटम" सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। उसका अर्थ यह था कि ऊर्जा को छोटे-छोटे हिस्सों में बाॕटा जा सकता है। जर्मनी में ही अल्बर्ट आइंस्टीन ने "सापेक्षता का सिद्धांत" प्रतिपादित किया था। सत्येन्द्रनाथ बोस इन सभी खोजों का अध्ययन कर रहे थे।
उन्होंने एक लेख लिखा- "प्लांक्स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम" इसे भारत में किसी पत्रिका ने नहीं छापा तो सत्येन्द्रनाथ ने उसे सीधे आइंस्टीन को भेज दिया। उन्होंने इसका अनुवाद जर्मनी में स्वयं किया और प्रकाशित करा दिया। इससे सत्येन्द्रनाथ को बहुत प्रसिद्धि मिली। उन्होंने यूरोप यात्रा के दौरान आइंस्टीन से मुलाकात भी की थी। सन् १९२६ में सत्येन्द्रनाथ बोस भारत लौटे और ढाका विश्वविद्यालय में १९५० तक काम किया। फिर शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उनका निधन ४ फरवरी, १९७४ को हुआ। अपने वैज्ञानिक योगदान के लिए वह सदा याद किए जाएँगे।
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